पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/१५६

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पुस्तक प्रवेश

पुस्तक प्रवश प्राणनाथ औरंगजेब के अन्त के दिनों में प्राणनाथ और धरनीदास के नाम भी मशहूर हैं। प्राणनाथ ने अपनी गुजराती पुस्तक 'कुलजुम सरूप मे वेदो और कुरान दोनों से हवाले देकर दोनों के सिद्धान्तों की समानता दर्शाई है। ग्राणनाथ जाति भेद, मूर्तिपूजा और ब्राह्मणों के प्रभुत्व के विरुद्ध था। उसके अनुयाइयों में हिन्दू और मुसलमान दोनों थे । और हर नए दीक्षा लेने वाले को हिन्दू और मुसलमान दोनों के साथ बैठ कर भोजन करना पडता था। यही उनकी दीक्षा थी। प्राणनाथ की एक खास पुस्तक 'कयामत नामा' है, जिसमें उसने साफ लिखा है कि-"तुम सब का, चाहे हिन्दू हो या मुसलमान, एक ईमान होना चाहिए।" इस पुस्तक में उसने यहूदी, ईमाई, मुसलमान और हिन्दू सब कं पीर, पैग़म्बरों और महात्माओं की जीवनियाँ दी हैं और सब में मौलिक समानता दर्शाई है। ईश्वर के लिए उसने अल्लाह और नुदा दोनों नामों का उपयोग किया है। अन्य प्रयत्न जगजीवनदास, बुल्ला साहब, केशव, चरनदास, सहजोबाई, दयाबाई, गरीबदास, शिवनारायन, रामसनेही इत्यादि के उपदेशों का भी ठीक यही सार था । जगजीवन के शिष्यों में ब्राह्मण, ठाकुर, चमार और मुसलमान, सब जातियों के लोग शामिल थे। बुल्ला साहब के उपदेशों मे फारसी के शब्द और सूफ़ी परिभाषाएँ भरी हुई हैं । बुल्ला साहब और केशव दोनों, दिल्ली के एक मुसलमान फकीर यारी साहब के शिष्य थे। मुसलमान फ़कीरों के हिन्दू शिष्य और हिन्दू फकीरों के मुसलमान शिष्य उन दिनों लाखों की तादाद में पाए जाने थे । महजो और दयाबाई दोनों स्त्रियाँ थी