पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/१४९

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मानव धर्म

मानव धर्म ___दादू के पाँच हजार पद्यों में से अनेक उर्दू में और कोई कोई अ नी मे हैं, मसलन्- बे मेहर गुमराह ग़ाफ़िल गोश्त खुरदनी, के दिल बदकार आलम हयात मुरदनो। ' या- कुल आलम यके दीदम अरवाहे इस्वलास, बद अमल बदकार दुई पाक याराँ पास । दादू ने भी शरीयत और मारिफल इत्यादि पर दरजे बदरजे जोर झाडू लिखता है.--- हौद हजूरी दिल ही भीतर, गुस्ल हमारा सारं । उजू साजि अलह के आगे, तहाँ निमाज गुजारं ।। काया मसीत करि पञ्चजमाती, मन ही मुला इमामं । आए अलेख इलाही भागे, तहँ सिजदा करै सलाम ।। सब तन तसबी कहै करीमं, ऐसा करले जापं ! रोज़ा एक दूर करि दूजा, कलमा आपै श्रापं ॥ अठे पहर अलह के आगे, इकटग रहिवा ध्यान । श्राप श्राप अरस के ऊपर, जहाँ रहै रहमानं ।। यानी--ऐ दादू, मालिक की मौजूदगी का तालाव दिल के अन्द तालाब में मैं स्नान करता हूँ, अल्लाह के सामने वज़ करके वही र ज़ पढता हूँ। दादू का शरीर उसकी मसजिद है, जमात के पञ्च उसके मन के ।