मानव धर्म मेहर महीत, सिद्क मुसल्ला, हक हलाल कुरान, शर्म सुनत, सील रोज़ा, होय मूसलमान । करनी काबा, सच्च पीर कलमा करम नेवाज, तसबीह सातिश भावसी नानक रक्खे लाज । यानी-दया को अपनी मसजिद बना, सञ्चाई का मुसल्ला बना, इन्साफ़ को अपनी कुरान बना, विनय को खतना समस, सुजनता का रोज़ा रख, तब नू सञ्चा मुसलमान होगा। नेक कामों को अपना काबा बना, सच्चाई को अपना पीर बना, परोपकार को कलमा समझ, ख़ुदा की मरज़ी को अपनी तसवीह, तब ऐ नानक ! खुदा तेरी लाज रक्खेगा। ठीक इसी तरह का उपदेश नानक ने हिन्दुओं को भी दिया । संयम और सदाचार पर नानक ने बहुत अधिक जोर दिया है। अन्य सूफ़ियों के समान नानक ने श्रान्मा की जनति के लिए गुरु को परमावश्यक बताया है । सूफ़ियों की शरीयत, मारफल, उफ़वा और लाहून के मुकाबले में नानक ने धर्मखण्ड, ज्ञानखण्ड, कर्मखण्ड और सचखण्ड का उपदेश दिया । इसमें कोई भी सन्देह नहीं कि नानक सूफ़ी साहित्य से पूरी तरह परिचित था । उस साहित्य का उसने अपने पद्यों में भरपूर उपयोग किया और उसी के आधार पर हिन्दू और मुसलमान दोनों को एक मालिक और एक मार्ग का उपदेश दिया। मुग़ल साम्राज्य के अन्त के दिनों में, उस समय की शोकजनक परि- स्थिति में नानक के अनुयाइयों ने बेहद पलटा खाया । वे नानक के सार्वभौम सिद्धान्तों के अनुरूप न चल सके । किन्तु संसार के अधिकांश
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