पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/१४२

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
११२
पुस्तक प्रवेश

पुस्तक प्रवेश शेख ब्रह्म ( इब्राहीम) इत्यादि सूफ़ियों के साथ उसने बहुत दिनों तक धर्म चर्चा किया। कोर के समान नानक के मरने पर भी उसके हिन्दू और मुसलमान शिष्यों में झगड़ा हुआ। अन्त में हिन्दुओं ने उसकी स्मृति में एक समाधि बनाई और मुसलमानों ने एक अलग कब, किन्तु दोनों इमारतें रावी की बाढ़ में पाकर बह गई। नानक का धर्म भी एकता और प्रेम का धर्म था, उसकी सम्प्रदाय मै भी हिन्दू और मुसलमान दोनों शामिल हुए। नानक मक्के पहुँचा । यहाँ पर मोहम्मद साहब के समान उसने एक खुदा का प्रतिपादन किया और अपने को उसका 'खलीफा' बताया-~~ ला इलाह इल्लल्लाह, गोविन्द नानक खुलफल्लाह ।* यानी अल्लाह केवल एक है,वही गोविन्द है,नानक उसका खलीफा है। नानक के पदों में भी संस्कृत, फारसी और अरबी तीनों भाषाओं के पदों की भरमार है। दोनों धर्मों की पृथकता को मिथ्या बताते हुए उसने लिखा- बन्दे इक खुदाय दे, हिन्दू मूसलमान, दावा राम रसूल कर, लड़दे बेईमान । ना हम हिन्दू ना मूसलमान, दोनों बिश्च बसे शैतान। एकै, एकी, एक सुभान,

  • गुरु नानक को जन्मसाखी, म० ३६, पाकनामा ।