पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/१४०

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
११०
पुस्तक प्रवेश

पुस्तक प्रवेश जितने पुरुष और स्त्री रचे गए हैं सब तुम्हारा ही रूप है, कबीर अल्लाह का और राम का बेटा है, वही कबीर का गुरु और पीर है। हिन्दू और तुरुक की एक ही राह है, जो सतगुरु ने बताई है, कबीर कहता है, सुनो भाई मन्तो ! राम और ख़ुदा में कोई भेद नहीं है। हिन्दू राम कहते हैं, मुसलमान रहीम कहते हैं । आपस में दोनों लड लब कर मरते हैं, मर्म को कोई नहीं जानता। कबीर पहला भारतवासी था, जिसने हिन्दू और मुसलमान दोनों के लिए बल्कि समस्त मानव जाति के लिए एक सामान्य धर्म का निर्भीकता के साथ प्रतिपादन किया । उम्मके अनुयाइयों में हज़ारों हिन्दू और मुसल- मान शामिल थे। अभी तक कबीरचौरा ( काशी) में कबीर के हिन्दू अनुयायी और मगहर में कबीर के मुसलमान अनुयायी हर साल जमा होकर कबीर की याद में अपनी श्रद्धाञ्जलि अर्पित करते हैं। कबीरपन्थियों की संख्या इस समय शायद दस लाख से अधिक नहीं है, किन्तु कबीर का प्रभाव इससे कहीं अधिक है, और पञ्जाब, गुजरात, बङ्गाल और दक्खिन तक फैला हुआ है। मुग़ल साम्राज्य के दिनों कबीर के विचार बराबर फैलते गए, यहाँ तक कि दूरदर्शी सम्राट अकबर ने 'दीने इलाही' के रूप में उन्हें सर्वस्वीकृत कराने की कोशिश की । वास्तव में कबीर ही अकबर का मानसिक पिता था । विधि ने या देश के भीतर तथा बाहर की परिस्थिति ने कबीर और अकबर को पूरी तरह सफल न होने दिया, किन्तु भारत की अन्तरात्मा भीतर से पुकार रही है यदि सत्य है तो यही है, और यदि भविष्य के लिए कोई मार्ग है तो केवल यही है । कबीर के विचारों की मौलिकता और महानता के कारण कबीर के