पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/१३९

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मानव धर्म

मानव धर्म सारांश यह कि कबीर ने कुरान और मोहम्मद साहब में अन्धविश्वास, ज, रोजे और नमाज़ इत्यादि का मजाक उड़ाते हुए मुसलमानों को समस्त रूढ़ियाँ छोड देने का उपदेश दिया है, हिन्दुओं को उसने उतने ही ज़ोर के साथ जात पाँत, मूर्तिपूजा, अवतार, और छुआछूत और वेद और शास्त्रों में अन्धविश्वास छोड़ देने की सलाह दी है, दोनों को उसने प्राणि- मात्र पर दया रखने, सबको एक खुदा की औलाद और भाई भाई समझने, अहङ्कार स्यागने और सब की सेवा करने का उपदेश दिया। कबीर के नीचे लिखे पद्य इस विषय में याद रखने योग्य हैं--- पूरब दिशा हरी को बासा, पच्छिम अलह मुकामा। दिल में खोजि दिलहि माँ खोजो, इहै करीमा रामा । जेते औरत मर्द उपानी, सो सब रूप तुम्हारा । कबीर पोगरा अलह राम का, सो गुरु पीर हमारा॥ हिन्दू तुरुक की एक राह है, सतगुरु सोइ लखाई ।। कहहिं कबीर सुनो हो सन्तो, राम न कहूँ खुदाई ॥ हिन्दू कहें राम मोहि प्यारा, तुरुक कहें रहिमाना। आपस में दोउ लरि लरि मूए, मर्म न काहू जाना ॥ यानी- लोग कहते है हरि पूरब में रहता है और अल्लाह पच्छिम लेकिन कबीर कहता है अपने दिल के अन्दर खोजो, वहीं करीम है छ वहीं राम है।