पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/१३१

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१०१
मानव धर्म

मानव धर्म उत्तर में लाकर उनके प्रचार करने का कार्य रामानन्द ने किया ! रामानन्द ने विष्णु के स्थान पर रास की भक्ति का उपदेश दिया और हर जाति के लोगों को अपनी सम्प्रदाय में शामिल किया । मैकॉलिफ़ लिखता है कि-"इसमें कोई सन्देह नहीं कि बनारस में विद्वान मुसलमानों के साथ रामानन्द की भेंट हुई।" रामानन्द के शिष्यों और अनुयाइयों मे अनेक मुसलमान भी थे। दो नाम उसके शिष्यों में सबसे अधिक प्रसिद्ध है, एक तुलसीदास और दूसरा कबीर । गोस्वामी तुलसीदास की रामायन सारे उत्तर भारत में प्रसिद्ध है । तुलसीदास का मोहावरा अवधी है । फिर भी संस्कृत, फारसी, और अरबी तीनों के शब्द भण्डारों से अपनी पुस्तक को अलंकृत कर एक ऐसी सरल और सर्वप्रिय हिन्दोस्तानी भाषा को रचने का श्रेय गोस्वामी तुलसीदास को प्राप्त है जिसमें ऊँचे से ऊँचा साहित्य लिखा जा सका । हिन्दोस्तानी जबान के बनाने वालों में गौरवामी तुलसी- दास का नाम सदा के लिए स्मरणीय रहेगा। कबीर निस्सन्देह कबीर की शुमार भारत के महान से महान तत्वदशियों, धर्माचार्यों और समाज सुधारकों में की जानी चाहिए। कबीर एक अत्यन्त स्वतन्त्र विचार का महापुरुष था । वह मत मतान्तरों के भेद और हर तरह के कर्मकाण्ड और रूढ़ियों का कट्टर विरोधी था ! हिन्दुनों और मुसलमानों की एकता का इस देश के अन्दर वह सब से पहला प्रचारक और सब से महान समर्थक था । उसका जन्म सन् १३४८ ईसवी में हुधा और मृत्यु सन् १५१८ ईसवी में । कहा जाता है कि कबीर किसी विधवा ब्राह्मणी के गर्म पे उत्पन्न हुआ था । बनारस के एक मुसलमान जुलाहे नीरू और