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पुस्तक प्रदेश भी देश के लिए यशस्कर नहीं कहा जा सकता। किन्तु इसके साथ ही हमें यह भी स्वीकार करना होगा कि कोई जाति विशेष किसी देश विशेष का ठेका लेकर पृथ्वी पर नहीं उतरी। सच यह है कि बहुत दरले तक मानव समाज का जातियों या देशों में बटवारा एक कृत्रिम बटवारा है। मानव समाज एक विशाल कुटुम्ब है, जिसका घर पृथ्वी है। आजकल के राष्ट्रीयता के भाव भी जो मानव समाज की अाजकल की स्थिति में हर देश के जीवित रहने के लिए एक दरजे तक आवश्यक प्रतीत होते हैं, वास्तव में एक अनिवार्य रोग ही हैं । इस विषय को अधिक विस्तार देना भी हमारे इस समय के प्रसङ्ग से बाहर है। फिर भी हम इतना अवश्य कहेंगे कि कोई मनुष्य किसी देश के अन्दर विदेशी केवल उस समय तक ही कहा जा सकता है, जब तक कि वह उस देश की सीमाओं से बाहर किसी दूसरे देश को अपना घर मानता हो, या उस पहले देश से धन बटोर कर दूसरे देश को ले जाता हो । किन्तु जिस समय कोई मनुष्य किसी देश को अपना घर बना लेता है, वहीं पर बस जाता है, देशवासियों के सुख में अपना सुख और दुख में अपना दुख समझने लगता है, तो फिर चाहे वह किसी भी धर्म का मानने वाला हो, अच्छे श्राचरण का हो या बुरे आचरण का, उसे विदेशी नहीं कहा जा सकता। अंगरेजों के आने से पहले तक अधिकांश समय में अलगानिस्तान भारत का एक प्रान्त था । फिर भी यदि अफगानिस्तान को भारत से बाहर मान लिया जाय तो महमूद ग़ज़नवी के हमले भारत पर विदेशी हमले थे। मुहम्मद बिन क्रासिम का सिन्ध पर हमला निस्सन्देह विदेशी हमला था। मोहम्मद गोरी का भारत पर हमला भी विदेशी हमला था। किन्तु जो