पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/१२१

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जिज्ञासु अरब

जिज्ञासु अरब १३. फिर भी नीचे की तुलना में यह स्पष्ट हो जायगा कि कम से कम उम्म समय इन आचार्यों ने बहुत दरजे तक इसलाम मे अपने सिद्धान्तों में सहायता और पुष्टि प्राप्त की, और एक दरजे तक भारत ही के अनेक प्राचीन विचारों ने अरब और ईशन से टक्कर खाकर एक नए वेश और पुनरुज्जीवित रूप में फिर भारत के अन्दर प्रवेश किया। सब से पहले हमारा ध्यान शङ्कराचार्य की ओर जाता है । शङ्कराचार्य ने बौद्ध मत के विरुद्ध उस समय की अनेक हिन्दू सम्प्रदायों को मिला कर उन्हें दार्शनिक नीव और एक सुन्दर व्यवस्थित रूप देने का जबरदस्त प्रयत्न किया । शङ्कर ने अपने से पहले के हिन्दू धर्म में अनेक नवाचार किए ! उसने सब दणों के लोगों के लिए सन्यास की दीक्षा को जायज करार दिया । 'मनुष्य-पञ्चक' में उसने एक स्थान पर लिखा है-"कोई भी तत्वदर्शी मनुष्य मेरा सञ्चा गुरु है, चाहे वह द्विल हो और चाहे चाण्डाल !" वैष्णव और शैव प्राचार्यों ने अनेक स्थानों पर शङ्कर का कडा विरोध किया । शङ्कर का अद्वैतवाद निस्पन्देह भारतीय था, किन्तु उस समय के मुसलमान सूफ़ियों के अद्वैतवाद के साथ उसमे गहरी समानता थी। कम से कम शङ्कर से पहले भारत में किसी ने भी अद्वैतवाद को इस तरह का रूप न दिया था। इसलाम के कठोर एक ईश्वरवाद और शङ्कर के अद्वैतवाद में भी थोडी सी समानता अवश्य है। शङ्कर के समय में इसलाम भारत में पहुँच चुका था । लिखा है कि जिस प्रदेश में शङ्कर का जन्म हुअा था, वहाँ का हिन्दू राजा तक इसलाम मत स्वीकार कर चुका था 18

  • Fancet inthropology, Bulletin, olm,No.1