८६ पुस्तक प्रवेश थी। वरासान, अफगानिस्तान, सीसतान और बलूचिस्तान इसलाम मत स्वीकार करने से पहले बौद्ध थे या हिन्दू । बलख्ख मैं एक बहुत बडा बौद्ध विहार था, जिसके बौद्ध मठाधीश अब्बासी खलीकानों के वजीर हुआ करते थे। बौद्धधर्म की सब मुख्य मुख्य पुस्तकों के अरबी में अनुवाद किए गए । "किताबुल बुद" और "बिल बहर वा बुदसिफ़" उन्हीं दिनों की लिखी हुई अरबी भाषा में बौद्धधर्म की प्रामाणिक पुस्तके हैं । इसी तरह सुश्रत, चरक, पञ्चतन्त्र, हितोपदेश, चाणक्य इत्यादि अगणित संस्कृत ग्रन्थों के अरबी में अनुवाद किए गए । विशेषकर बुद्ध के जीवन और उसके सिद्धान्तों का अरब के मुसलमानों पर बहुत बड़ा प्रभाव पडा । धीरे धीरे जिज्ञासु अरबों में तरह तरह के स्वतन्त्र विचार, नए नए दार्शनिक, और नई नई सम्प्रदाएँ पैदा होनी शुरू हुई । इस्त्री परिस्थिति के अन्दर इसलाम मे अद्वैतवाद और सुप्रसिद्ध सूफ़ी विचारों का जन्म हुआ । इमलाम में अद्वनवाद उन्ही दिनों शिया मुसलमानों की 'गुलात' सम्प्रदाय के प्राचार्यों ने अवतारवाद (हुलूल, तशबीह ), श्रआवागमन (तनासुख्ख ) इत्यादि को अपने सिद्धान्तों में स्थान दिया और यह प्रतिपादन किया कि मनुष्य की आत्मा भी बढ़ते बढते खुदा के रुतबे तक पहुँच सकती है। 'अली इलाही' सम्प्रदाय के लोगों ने एक से अधिक स्त्री के साथ विवाह और तलाक की प्रथा दोनों को नाजायज़ करार दिया । मसजिद में जाना और शारीरिक 'शरई' पवित्रता को भी उन्होंने अनावश्यक बताया। अनेक सम्प्रदायों ने कुरान के जाहिरा अर्थों को न मान कर उसे अलङ्कार के रूप मे मानना शुरू • Nicholson A Literary History of the ritabs, p 259
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