पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/१०८

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पुस्तक प्रवेश

पुस्तक प्रवेश भारत के उपर मुसलमानों का राजनैतिक प्रभुत्व या तो शुरू ही न हुआ था और या कम से कम अभी जमने न पाया था। भारत में इसलाम का प्रचार ___हमारा हरगिज़ यह मतलब नहीं कि मुसलमानों की राजसत्ता का इस देश के अन्दर इसलाम के फैलने पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। निस्सन्देह हर युग और हर देश में प्रजा के ऊपर राजा या शासकों के धार्मिक विचारों का प्रभाव पड़ना स्वाभाविक और अनिवार्य है। यदि सन्नाट अशोक न होता तो बौद्ध धर्म का भारत के एक कोने से दूसरे कोने तक इस तरह फैल सकना शायद इतना आसान न होता । इसी तरह यदि सम्राट समुद्रगुप्त और चन्द्रगुप्त (दूसरा) वैष्णव मत के पोषक और सम्राट यशोधर्म देव (विक्रमा- दित्य ) शैव मत के पोषक न होते तो हिन्दू मत का बौद्ध मत को भारत से निकाल बाहर कर सकना इतना सरल न होता । हम यह भी नहीं कहते कि भारतवासियों से इसलाम मत के स्वीकार कराने में कहीं पर किसी तरह की भी जबरदस्ती का उपयोग नहीं किया गया। दुर्भाग्यवश धार्मिक मामलों में थोड़ी बहुत ज़बरदस्ती संसार के हर देश के इतिहास में पाई जाती है। हिन्दू मत्तों के साथ बौद्ध मत और जैन मत के सङ्घर्ष के दिनों में भी इस तरह की ज़बरदस्तियों की अनेक मिसालें भरी पड़ी हैं। किन्तु इतिहास से बिलकुल साफ़ पता चलता है कि इस देश के अन्दर मुसल- मानों के हमलों से बहुत पहले इसलाम मत प्रवेश कर चुका था, इसलाम इस देश में महमूद ग़ज़नवी के हमले से भी पहले काफी उन्नति कर चुका था, और इसलाम के भारत में फैलने का खास सबब उस समय के इसलाम के प्रचारकों का त्याग, उनकी सच्चरित्रता, और इसलाम मत के वे स्पष्ट और