पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/१०७

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इसलाम और भारत

इसलाम और भारत फकीरों और प्रचारकों का बड़े प्रेम के साथ स्वागत किया और उन्हें अपनी अपनी रियासत में इसलाम प्रचार के लिए हर तरह की महायता दी। ग्यारवीं सदी के करीब खम्भात में कुछ हिन्दुओं ने मुसलमानों की एक मसजिद पर हमला करके उसे गिरा दिया। राजा सिद्धराज ने तहकी- कात करके अपराधियों को दण्ड दिया और मुसलमानों को अपने धन से एक नई मसजिद बनवा दी। सोमनाथ के हिन्दू राजा के अधीन मुसलमान सेना और अनेक मुसलमान अफसर थे । ग्यारवीं सदी में गुजराती बोहरों के शिया धर्माचार्य ने यमन (अरब) से आकर गुजरात में रहना शुरू किया । उसी समय के निकट नूरुद्दीन ने गुजरात के कुनबियों, खेरवाओं और काडियों को इसलाम धर्म में शामिल किया । उन असंख्य मुसलमान सन्तों और फ़कीरों के नाम गिनाने की आवश्यकता नहीं है, जो आठवीं सदी से लेकर पन्द्रहवी सदी तक बराबर उत्तर से लेकर दक्खिन तक और पूरब से लेकर पच्छिम तक भारत के विविध भागों में आकर बसते रहे और जिनके उच्च चरित्र और इसलाम के सरल धार्मिक सिद्धान्तों के सबब उस धार्मिक अव्यवस्था के युग में स्थान स्थान पर हज़ारों और लाखों भारतवासियों ने इसलाम धर्म स्वीकार करना शुरू कर दिया । अभी तक यदि उत्तर भारत के उन ग्रामों में धूमा जाय, जिनकी अधिकांश आबादी मुसलमान है, तो दरयाप्त करने पर मालूम होगा कि वहाँ के लोगों के इसलाम मत स्वीकार करने का सबब किसी न किसी समय किसी न किसी त्यागी और संयमी मुसलमान फ़कीर का उनके अन्दर सहवास ही था । हमें फिर यह याद रखना चाहिए कि यह कहानी अधिकतर उस ज़माने की है, जब कि अधिकांश