पुस्तक प्रवेश रहमान सानीनी रक्खा गया । इसलाम मत स्वीकार करने के बाद अब्दुर- रहमान अरब गया। चार साल बाद अरब में ही उसकी मृत्यु हुई । अरब से उसने कई मुसलमान विद्वानों और प्रचारकों को भारत भेजा, उनकी मारफत अपने उत्तराधिकारियों को शासन प्रबन्ध के लिए हिदायतें दी,और यह भी हिदायत दी कि देश के अन्दर नए मल के प्रचार में अरब विद्वानों को पूरी सहायता दी जाय । राजा चेरामन पेरूमल के उत्तराधिकारियों ने बड़े हर्ष के साथ अरब विद्वानों का स्वागत किया और उनके आदेशानुसार मलवार तट पर निराकार की उपासना के लिए ११ नई मसजिद बनवाई। कालीकट के राजा का मुसलमान होना कालीकट के सामुरी राजा और त्रिवानकुर के महाराजा उसी चेरामन पेरूमल के वंशज और उत्तराधिकारी हैं। इन दोनों स्थानों पर उस १,१०० साल पहले की घटना की याद में हाल तक (सन् १९१२ ई.) यह रिवाज चला आता था कि जिस समय नया सामुरी अपनी गद्दी पर बैठता था तो मुसलमानों की तरह उसका मुण्डन किया जाता था, मुसलमानों के से उसे कपड़े पहनाए जाते थे, एक मोपला उसके सिर पर ताज रखता था, राज- तिलक के बाद से उसे जातिच्युत की तरह समझा जाता था, अपने घर के लोगों के साथ भी फिर वह सहभोज नहीं कर सकता और कोई नय्यर उसे स्पर्श नहीं करता । समझा यह जाता है कि प्रत्येक सामुरी चेरामन पेरूमल के अरब से लौटने के इन्तज़ार में केवल उसके एक प्रतिनिधि की हैसियत से तख्त पर बैठता है । त्रिवानकुर के महाराजाओं को गद्दी पर बैठते समय जब खड़ग हाथ में दी जाती है, तब अाज पर्यन्त उन्हें यह कहना पड़ता है- ___+Quadr Husain Khan South Indian Mnssalmans, Madras Christiar Collage Magarsne (1912-13),P 241
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