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भारत में अंगरेज़ी राज

५०६ भारत में अंगरेजी राज खां अभी हाल ही में बालिग हुआ था। गवरनर जनरल ने हेनरी वेल्सली को आदेश दिया कि इमदादहुसेन लो के रिश्तेदारों, सलाहकारों और दोस्तों में से जो इस काम में अंगरेज़ों की मदद करने को तैयार हों, उन्हें काफी इनाम देने के वादे कर लेना और जो राजी न हों उन्हें खूब डर दिखलामा। इस पर भी नवाब इमदादहुसेन खाँ का इस तरह के पत्र पर दस्तखत कर देना इतना आसान न था। गवरनर जनरल के हुकुम से इमदादहुसेन खाँ को लखनऊ बुलाया गया। इसके बाद साज़िश, चोरी और जालसाज़ी से मिल कर काम लिया गया। यहाँ तक कि लखनऊ पहुँचते ही इमदाबहुसेन खाँ ने देखा कि उसके दस्तखत की मोहर किसी तरह उसके बक्स से उड़कर खुद बखुद लखनऊ के अंगरंज रेजिडेण्ट के मकान में पहुँच गई । जो कुछ हो, कहा जाता है कि ४ जून सन् १८०२ को बरेली पहुँच कर नवाब इमदादहुसन खां ने अपने और अपनो औलाद के लिए १ लान : हज़ार रुपए सालाना पेनशन लेकर अपनी तमाम रियासत अपने दस्तखत से सदा के लिए अंगरेज कम्पनी के सुपुर्द कर दो। हेनरी वेल्सली ही फर्रुखाबाद रियासत का पहला अंगरेज़ शासक नियुक्त हुआ।