पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/८५

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भारत में अंगरेज़ी राज

४६ भारत में अंगरेजी राज केवल थोड़ी सी रखकर जितनी कि मालगुजारी वसूल करने या शाही जलसों आदि के लिए आवश्यक हो, बाकी तमाम तोड़ दी जाय और उसकी जगह कम्पनी की कुछ पैदल और कुछ सवार पलटने और बढ़ा दी जावे, जिनका खर्च ७६ लाख की रकम के अलावा मवाब अदा किया करे । नवाब सादतअली इस नई तजवीज को सुनकर चकित रह गया। उसने अपने एतराज लिखकर भेजना चाहा। किन्तु वेल्सली ने बिना नवाब को जवाब का समय दिये, एक नई पलटन नवाब के इलाके में रवाना कर दी, और नवाब को उसके खर्च के लिए ज़िम्मेदार करार दिया। इसके बाद एक दूसरी पलटन तैयार कर ली गई और यह आशा दी गई कि पहली के अवध पहुँचते ही यह दूसरी पलटन भी अवध के लिए रवाना हो जावे। इस पर नवाब सश्रादतनली ने ११ जनवरी सन् १८०० को एक विस्तृत, स्पष्ट, तर्कयुक्त और नम्रता पूर्ण पत्र नवाब समादतमली उस समय के रेजिडेण्ट स्कॉट की मार्फत वेल्सली का पत्र और वेल्सनी का जवाब . के पास भेजा । इस पत्र में नवाब सावताली ने अंगरेजों और अवध के नवाबों के पुराने सम्बन्ध का जिक्र करते हुए यह दिखलाया कि अवध की सेना को तोड देने का नतीजा सल्तनत के हजारों पुराने वफादार नौकरी को बेरोज़गार कर देना होगा, जिसका असर प्रजा के ऊपर बड़ा अहितकर होगा। सादतप्रलो ने लिखा कि-"सब से ज़्यादा • Dacoste sn Excelss by Mayor Burd