पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/८४

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
४९७
अवध और फरजाबाद

अवध और फरखाबाद ४६७ अंगरेज़ उसकी देख रेख करता था। कहा गया कि बजीरप्रती अवध के कुछ सरदारों के साथ गुप्त साज़िश कर वीरमजी से से रहा है। इस पर वजीरश्रलो को बनारस से कलकत्ते भेजने का हुकुम हुआ। इसी पर वजीरअली और चेरी में कुछ कहा सुनी हो गई । यहाँ तक कि किसी बात पर वजीरअली ने अपनी तलवार खींच ली और चेरी और उसके साथ के दो और अंगरेजों को वहीं खत्म कर दिया। वजीरअली बनारस से भाग कर अवध पहुँचा । कुछ और अवधनिवासी जो ज़ाहिर है इस बात को महसूस कर रहे थे कि अंगरेज़ों ने वजीरअली के साथ अन्याय किया है, अब उसके साथ मिल गए। इन लोगों ने अवध के कुछ इलाकों को अपने अधीन कर लिया। नवाब सश्रादतअली ने कम्पनी की उस सबसीडीयरी सेना की सहायता से, जिसके खर्च के लिए सन् १७६८ की सन्धि के अनुसार सादतअली को ७६ लाख रु० सालाना देने पड़ते थे, इस बगावत को शान्त कर दिया। किन्तु वेल्सली को अपनी इच्छा पूरी करने के लिए यह खासा अच्छा अवसर मिल गया। इस घटना के आधार पर ५ नवम्बर सन् १७EE को वेल्सली ने नवाब सआदतअली को एक पत्र लिखा, नवाब समादतमती जिसमें सादतअली को यह सलाह दी कि से मई मार्गे आप अपने यहां की सेना में अमुक अमुक 'सुधार' कीजिये। इन सुधारों का मतलब केवल यह था कि नवाब के पास अभी तक जो कुछ अपनी सेना रहा करती थी, उसमें से ३२