पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/७७

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
४९२
भारत में अंगरेज़ी राज

भारत में अंगरेजी राज अली ने उन्हें बाँध रक्या था। इसके कई सबब हो सकते हैं। एक इतिहास लेखक लिखता है कि हैदर अपने जिन बागो मुलाजिमों को एक बार बरखास्त कर देता था उन्हें दोबारा अपने यहां न रखता था, किन्तु टोपू का व्यवहार इसके विपरीत था। वह इस तरह के श्रादमियों को एक बार सजा देकर उन्हें फिर बहाल कर देता था। इस इतिहास लेखक की राय है कि यह एक त्रुटि ही टीपू के नाश का कारण हुई। असलीयत यह है कि विश्वासघात का जो पौधा हैदरअली के रहते हुए मैसूर की भूमि में न फल सका, वह धीरे धीरे टीपू के शत्रुओं के लगातार परिश्रम और सिञ्चन द्वारा टीपू के समय में आकर फल देने लगा। सम्भव है कि देशघातकता के उस महान पाप से भारतीय प्रात्मा को मुक करने के लिए-जिसने कि वास्तव में बोर टीपू की शकि को चारों ओर से घेर कर चकनाचूर कर दिया-भारत का एक बार विदेशी शासन के कटु अनुभवों में से निकलना आवश्यक था। जो कुछ हो, टीपू वीर, योग्य और अपनी प्रजा का सच्चा हितैषी था। उसके शत्रु भी इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि उसने अपने रुधिर के अन्तिम विन्दु से अपने देश की स्वाधीनता की रक्षा का प्रयन किया। उसने कभी किसी के साथ दगा नहीं की, उसकी मृत्यु एक श्रादर्श वीर की मृत्यु थी। भारत की स्वाधीनता के रक्षकों में उसका पद अत्यन्त ऊँचा था और संसार के स्वतन्त्रता के शहीदों में उसका नाम सदा के लिए यादगार रहेगा।