११०४ भारत में अंगरेज़ी राज यह समय इङ्गलिस्तान में बढ़ते हुए राष्ट्रीय जीवन का समय था। कारण यह था कि भारतीय साम्राज्य, भारत की लूट और भारतीय उद्योग धन्धों के नाश के प्रताप से इङ्गलिस्तान के उद्योग धन्धों और इङ्गलिस्तान के व्यापार ने पिछले बीस वर्ष के अन्दर अपूर्व उन्नति की थी। इङ्गलिस्तान का धन बढ़ रहा था। शहरों की आबादी बढ़ती जा रही थी। धन की वृद्धि के साथ साथ लोगों के हौसले भी बढ़े हुए थे। राजनैतिक क्षेत्र में प्रजा नए नए अधिकार मांग रहो थी। इसीलिए सन् १८३२ में वहाँ की प्रजा के अधिकारों को बढ़ाने के लिए पार्लिमेण्ट को नया 'रिफ़ॉर्म एक्ट' पास करना पड़ा था। किन्तु सदा यह देखने में आया कि इङ्गलिस्तान के अन्दर प्रजा .. के अधिकार और उनके हौसले जब जब, जितने सब अन्यायों से जितने बढ़ते गए, पराधीन भारत की बेड़ियाँ - तब तब, उतनी उतनी ही अधिक कसती गई। स्वाभाविक भी यही है, क्योंकि विदेशी शासन के अधीन शासक और शासित दोनों देशों के परस्पर विरोधी हित होते हैं। भारत की दरिद्रता में इङ्गलिस्तान की समृद्धि, और भारत की जागृति में इङ्गलिस्तान को खतरा । इङ्गलिस्तान की जनता के अधिकार जितने जितने बढ़ते जायेंगे, भारतवर्ष के क्रियात्मक शासकों की संख्या उतनी उतनी ही बढ़ती जायगी और भारत की परवशता और दरिद्रता भी उतनी उतनी हो अधिक होती जायगी। लॉर्ड मैकॉले ने एक स्थान पर सत्य लिखा है-
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भारत में अंगरेज़ी राज