पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/६९४

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भारत में अंगरेज़ी राज

१०६० भारत में अंगरेज़ी गज वनादार नौजवान नरेश की आपत्तियों से क्या क्या फायदा उठाया जा सकता है। x x x गवरनर जनरल के चीफ़ सेक्रेटरी ने रेजिडेण्ट के नाम एक गुप्त पत्र लिखा जिसमें उसे हिदायत की कि पाप निजी तौर पर महाराजा से मिल कर इधर उधर की बातों मे यह पता लगाने की कोशिश करें कि अया महा- राजा उन गम्भीर भापत्तियों से घिरा हुआ होने के कारण, जो अधिकतर हमारी ही सरकार को खड़ी की हुई हैं, पदत्याग करना पसन्द करेगा या नहीं। यदि वह कर ले तो महाराजा का देश ब्रिटिश सरकार को मिल जायगा और महाराजा को एक सुन्दर पेनशन दे दी जायगी जो उसी की रियासत की प्रामदनी में से अदा की जायगी।"* रेजिडेण्ट कैवेनडिश लॉर्ड बेण्टिक की इच्छा को पूरा न कर सका। इस पर जॉन होप लिखता है- "फौरन् एक दूसरा गुप्त पत्र पहुँचा xxx जिसमें मिस्टर कैवेनडिश की लानत मलामत की गई, और अन्त में यह अर्थ सूचक वाक्य लिखा गया • “But if these dangers surrounded him (Maharaja Junko Suindia) in his capital, he was threatened with no less danger from the council of Calcutta Secret deliberations were there heing held, with a view to discover what proht could be made out of the troubles of this weak but most faithful young prince, A demiolfirnal letter was written to the Resident by the Chtel Secretary of the Foreign Department, desiring him to learn, at a private interview, by way of u feeler, if the Maharajah, encircled as he was by serious troubles-troubles mainly raused by our government-would like to resign, assigning over the country to the Bntish Government, and receiving a handsome pension, which would be paid out of his own revenues "- The House of Scindra, a Sketch, by John Hope, published in 1863, by Messrs Longman, Green, Longman, Roberts and Green