पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/६८०

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भारत में अंगरेज़ी राज

१०७६ भारत में अंगरेजी राज हो तरह के भाव उत्पन्न होते थे। इसके विरुद्ध हमारी नीति इसके ठीक विपरीत रही है-अर्थात् म्नेह शून्य, स्वार्थमय और निर्दय ।"* किन्तु लॉर्ड विलियम बेण्टिक का अपना शासन उतना ही 'स्नेहशून्य, स्वार्थमय और निर्दय' था जितना किसी भी दूसरे गवग्नर जनरल का। गवरनर जनरल बनने से पहले बेण्टिक कुछ दिनों मद्रास का गवरनर रह चुका था। उस समय बेण्टिक ने, अपनी कौन्सिल के एक प्रमुख सदस्य विलियम थैकरे की लेखनी द्वारा भारत में अंगरेजों की शासन नीति को इन म्पष्ट शब्दों में बयान किया था- "इङ्गलिस्तान के अन्दर यह बहुत ही उचित है कि वहाँ की भूमि से जितनी पैदावार हो, उसका एक विशेष भाग कुछ खास खास कुटुम्बों को खुशहाल और धनसम्पन्न बनाए रखने में खर्च किया जाय, ताकि उनमें से देश की सेवा और रक्षा के लिए शासन सभाओं के सदस्य, तत्ववेत्ता और वीर यांधा उत्पन्न हो सके x x x इस प्रकार की आमदनी के प्रताप से जो अवकाश, जो आज़ादी और जो उच्च विचार मनुष्य में पैदा होते है उन्हीं के बल इस श्रेणी के लोगों ने इङ्गजिस्तान को गौरव के शिखर तक पहुँचाया है। ईश्वर करे कि वे चिरकाल तक इस प्रानन्द को भोगते रहें;-किन्तु भारत में उस गर्व को, उस स्वाधीनता को और उस तरह के • " In many respects the Mohammadens surpassed our rule , they setled in the countries which they conquered, intermixed and intermarned with the natives they admitted them to all privileges , the interests and the sympathies of the conquerors and the couquered became identified Our policy, on the contrarv, has been the reverse of this,--cold, selfish and unteeling "-Lord William Bentink