२०७४ भारत में अंगरेजी राज स्वाभाविक था कि इस घटना ने उस समय जबरदस्त सनसनी पैदा कर दी, क्योंकि यह पहला अवसर था जब कि हमने खुले और निश्चित तौर पर ब्रिटिश ससा की स्वाधीनता का प्रतिपादन किया । लोग आम तौर पर यह कहते थे कि हिन्दोस्तान का ताज दिल्ली सम्राट के सर से उठा कर अब अंगरेज़ कौम के सिर पर रख दिया गया। “कहा जाता है कि शाही खानदान और उसके आश्रितों ने इस घटना पर गहरा शोक मनाया । उन्होंने अनुभव किया कि इससे पहले उन्हें मराठों के कारण और नकलीफ़े चाहे कुछ भी क्यों न सहनी पड़ी हो, किन्तु मराठे दिल्ली सम्राट को सदा समस्त भारत का न्याय्य अधिराज स्वीकार करते रहे। अब पहली बार उनका यह रुतबा भी छीन लिया गया ।" निस्सन्देह दिल्ली सम्राट का इस प्रकार का निरादर चुपचाप सहन कर लिया जाना इस बात को सावित करता है कि उस समय भारतवासियों में राष्ट्रीय प्रात्माभिमान का शोकजनक प्रभाव था। यह भी कहा जाता है कि सन् १८२७ की यह घटना ३० वर्ष बाद के गदर के कारणों में से एक कारण थी। भारत सम्राट का मान भङ्ग करने के बाद मानी ऐमहर्ट ने शिमले में गर्मियाँ गुजारीं । इसके बाद मार्च सन् १८२८ में ऐमहर्ट ने इङ्गलिस्तान की राह ली। Peter Aubur in his Rist and Progressofthe British Porver m India, rol 1, p 606
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भारत में अंगरेज़ी राज