ली सम्राट का अपमान १०७२ भारत में अंगरेजी राज का एक मात्र उद्देश यह था कि दिल्ली सम्राट को भारत और संसार की नज़रों में गिरा दिया जाय। उस " समय तक अंगरेज़ दिल्ली सम्राट की प्रजा समझे - जाते थे और स्वयं दिल्ली सम्राट को भारत का सम्राट और अपने को उसकी प्रजा स्वीकार करते थे। ऐमहर्ट ने यह चाहा कि इस विचार का अब धीरे धीरे अन्त कर दिया जाय। सम्राट से इस तरह की भेंटों की जो पुरानी गति चली आती थी, जिसके अनुसार उस समय तक के गवरनर जनरल और अन्य समस्त भारतीय नरेश दिल्ली सम्राट से भर किया करते थे, ऐमहर्ट ने उसे बदलकर नई रीति बरतना चाहा। लिखा है कि सम्राट अकबरशाह को पहले से राज़ी कर लेने के लिए उससे यह साफ़ झूठा वादा किया गया कि यदि आप इस तरीके को स्वीकार कर लगे तो लॉर्ड लेक ने श्रापके पिता सम्राट शाहआलम से जो कुछ वादे किए थे, कम्पनी उन सब को तुरन्त पूरा कर देगी और इस नए तरीके की भेंट से आपके प्राचीन श्रादाब व अलकाब में कोई फरक न पाएगा। सम्राट अकबरशाह ने स्वीकार कर लिया। लॉर्ड ऐमहर्ट १५ फ़रवरी सन् १८२७ को दिल्ली पहुँचा । १७ फ़रवरी को सम्राट और ऐमहर्ट में भेट हुई । “सम्राट तख्त ताऊस पैर बैठा हुआ था ऐमहर्ट सम्राट के सामने दाहिनी ओर एक • Tours In Upper India, by Mayor Archer, P. 347
पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/६७६
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१०७२
भारत में अंगरेज़ी राज