टोपू सुलतान में है। इस पत्र व्यवहार से स्पष्ट है कि उस समय के जगद्गुरु शङ्कराचार्य और टीपू सुलतान में किस प्रकार का सम्बन्ध था। टीपू के महल के अन्दर अनेक हिन्दू पुरोहित और ज्योतिषी ___रहा करते थे, और टीपू की ओर से यज्ञ, हवन, हिन्दू पुरोहित ____ जप इत्यादि करते रहते थे। मरते दम तक टीपू और ज्योतिषी मे ब्राह्मणों को दान दिए और हिन्दू ज्योतिषियों के आदेशानुसार या हवन करवाए। भाद्रपद शुक्ला द्वितीया विरोधीकृत सम्बत्सर अर्थात् सन् १७६१ का लिखा हुआ जगद्गुरु के नाम का एक और पत्र हमारे पास मौजूद है, जिसमें टीपू ने अपने खर्च पर जगद्गुरु से 'शतचंडी सहस्र पाठ' की व्यवस्था कर देने की प्रार्थना की है। मञ्जुनगुड, श्रीरङ्गपट्टन और मेलकोट इत्यादि के अनेक हिन्दू मन्दिरों को टीपू ने अनेक बार नज़रें और जागीरे कोजागार दी। इनमें से बंगलोर में टीपू के ज़नाने महल के ठीक सामने श्रीवेङ्कटरामन्न स्वामी का मन्दिर, महल से मिला हुश्रा श्रीनिवास का मन्दिर, श्रीरङ्गपट्टन के महल के पास भीरगनाथ स्वामी का मन्दिर और श्रीरङ्गपट्टन के अन्य अनेक मन्दिर प्राज तक टीपू की धार्मिक उदारता के साक्षी मौजूद हैं। टीपू की धार्मिक उदारता के विषय में इससे अधिक सुबूत देने की आवश्यकता नहीं है । इस तरह के नरेश पर अपने तुच्छ स्वार्थ की दृष्टि से भूठे कलङ्क लगाना उसके, उसके देश और उसकी जाति के साथ घोर अन्याय करना है।
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टीपू सुल्तान