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१०६४
भारत में अंगरेज़ी राज

१०६४ भारत में अंगरेजी राज तरह धन बहाना शुरू कर दिया। विलसन लिखता है कि = अगस्त सन् १८२४ को डल्ला नामक बरमो जिले के लोगों को बरमा दरबार के विरुद्ध भड़का कर अपनी ओर मिलाने के लिए करनल कैली को डल्ला भेजा गया। विलसन यह भी लिखता है कि रंगून की अंगरेज़ी सेना ने जब यह देखा कि श्रावा की ओर बढ़ सकना असम्भव है तो उसने समुद्र तट के कुछ प्रान्तों को अपनी ओर करना चाहा । इसके लिए तेनासई का ज़िला, जिसमें टेवाय और मरगुई शामिल हैं, चुना गया । २० अगस्त को रंगून से कुछ सेना तेनासई की ओर गई। पहली सितम्बर को यह सेना तेनासई पहुँची। लिखा है कि किले के अन्दर की संरक्षक बरमी सेना के एक मातहत बरमी अफसर ने अंगरेजों से मिल कर अपने सेनापति अर्थात् किलेदार और उसके कुटुम्बियों को स्वयं गिरफ्तार करके अंगरेजों के हवाले कर दिया और अंगरेजों ने बिना संग्राम नगर पर कब्ज़ा कर लिया। मालूम नहीं कि उस मातहत बरमी अफसर को इस विश्वासघात का क्या इनाम दिया गया ? इसी प्रकार को और भी कई लड़ाइयाँ हुई, जिनके विस्तार में पड़ने की आवश्यकता नहीं है और जिनमें से ला का अधिकांश में ऐसी ही रिशवतों और साजिशों के मृत्यु बल अंगरेजों ने विजय प्राप्त की। निस्सन्देह कूटनीति में वोर बरमो भी अंगरेजों से टक्कर न ले सके । इन्हीं पराजयों का हाल सुन कर महा बन्दुला को अराकान छोड़ कर रंगून की ओर लौटना पड़ा था। इतने ही में बरमा के दुर्भाग्य से महाबन्दूखा