पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/६५६

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१०५३
लॉर्ड ऐमहर्ट

लॉर्ड ऐमहर्ट १०५३ साथ इतना उदार और अच्छा था कि प्रजा ने अंगरेजों के साथ पूरा सहयोग किया। अंगरेज़ों के रंगून पहुँचते ही रंगून की समस्त प्रजा तुरन्त नगर खाली करके अपने सामान, बाल बच्चों, पशुओं, गाड़ियों और किश्तियों सहित दूर की झाड़ियों में छिप गई । अंगरेज़ी सेना को नगर बिलकुल खाली मिला । यहाँ तक कि रंगून से आगे बढ़ सकना तो दूर रहा, अंगरेज़ी सेना को नगर के अन्दर कहीं एक दाना भी रसद का न मिल सका। इसके अतिरिक्त बरमी सेना ने, जो अपने कार्य में काफ़ी होशियार थी, प्रतिदिन रात को झाड़ियों से निकल निकल कर अंगरेजो सेना पर धावे मारने शुरू किए। अंगरेज़ न पीछे हट सकते थे और न आगे बढ़ सकते थे। रंगून में उनके पास खाने के लिए रसद तक न थी। उनकी हालत अत्यन्त करुणाजनक हो गई। स्नॉडग्रास नामक लेखक लिखता है- "विशेष कर यह मालूम था कि रंगून में किरितयाँ बहुत है, और बहुतों को यह भाशा थी कि x x x रान शहर से काफी सामान इस तरह का मिल जायगा जिसकी सहायता से हम राजधानी को विजय करने के योग्य कानी सेना नदी के मार्ग से उपर भेज सकेंगे, और इस प्रकार हम फौरन् सदाई को खत्म कर सकेंगे। "अपनी इन योजनाओं में हम यह भूल गए थे कि बरमा दरबार जिन प्रान्तों को विजय कर लेता था उनकी मोर उसकी शासन नीति अत्यन्त