लॉर्ड ऐमहर्ट १०४६ थे। शिक्षा का प्रचार जितना उस समय उनमें था उतना यूरोप के किसी भी ईसाई देश में न था। वे वीर, महत्वाकांक्षी और युद्ध- प्रेमी थे। उनकी वीरता के विषय में इतिहास लेखक विलसन लिखता है- "अपनी सरकार को प्रबल और अनियमित सत्ता और लोगों के पराक्रम और आत्म विश्वास के कारण बरमियों को हर लड़ाई में विजय प्राप्त होती थी, और आधी शताब्दी से उपर तक प्रत्येक संग्राम में, चाहे वरमियों ने अपने किसी शत्रु पर हमला किया हो, और चाहे किसी शत्रु के हमने का मुकाबला किया हो, विजय सदा वरमी सेना की ओर हो रहती थी । पगू पर हमला करने के थोड़े दिनों बाद ही बरमी लोग उस राज के मालिक बन गए। इसके बाद उन्होंने तेनासई तट के धन सम्पन्न जिले स्याम से छीने । चीन ने परमा पर एक बार जबरदस्त हमला किया, किन्तु बरमियों ने बड़ी वोरता के साथ चीनियों के मुंह मोड़ दिए । अन्त में अराकान, मनीपुर और आसाम के प्रान्त अपने साम्राज्य में मिला कर बरमी लोग उस समस्त तक, किन्तु दूर तक फैले हुए देश के मालिक बन गए, जो चीन के पश्चिमी प्रान्तों और हिन्दोस्तान की वीय सरहद के बीच में है।"* • “ The vigorous despotism of the Government, and the confident courage of the people, crowned every enterprise with success, and for above half a century the Burman arms were invariably victorious, whether wielded for attack or defence Shortly atter their insurrection against Pegu, the Burmans became the masters of that Kingdom They next wrested valuable districts of the Tenasserim coast from Siam They repelled with great gallantry, a formidable invasion from China, and by the final annexation of Arakan, Manipur, and Assam, to the Empire, they established themselves throughout the whole of the narrow, but extensive tract of the country,
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लॉर्ड ऐमहर्ट