पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/६३४

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१०३३
तीसरा मराठा युद्ध

तीसरा मराठा युद्ध १०३३ इसके बाद हमारे लिए केवल अप्पा साहब को शेष कहानी को संक्षेप में बयान करना बाकी रह जाता है । १५ अप्पा साहब के मार्च सन् १८१८ को नागपुर में गिरफ्तार होने के अन्तिम प्रयत्न - समय से लेकर मृत्यु के समय तक अप्पा साहब की कहानी अत्यन्त करुणाजनक और उपन्यास के समान मालूम होती है । अप्पा साहब को कम्पनी की कई सौ पैदल और कुछ सवार सेना की निगरानी में जबलपुर के रास्ते नागपुर से इलाहाबाद के लिए रवाना किया गया। मालूम होता है कि अप्पा साहब के साथ अंगरेज़ों का व्यवहार उस समय बेहद बुरा था। मार्ग में एक दिन रात को दो बजे के करीब राचूरी नामक स्थान से अप्पा साहब अपनी गारद को आँख बचा कर और उसी गारद के के विश्वस्त हिन्दोस्तानी सिपाहियों और तीन सवारों को साथ लेकर एक सिपाही को पोशाक में भाग निकला। कम्पनी की ओर से फौरन् उसकी गिरफ्तारी के लिए बड़े बड़े इनामों का एलान किया गया और अनेक प्रयत्न किए गए, किन्तु कई छोटे बड़े स्थानों में ठहरता हुआ अप्पा साहब महादेव पहाड़ पर पहुँचा, जहाँ पर कि गोंड जाति के लोग उसका स्वागत करने और उसकी सहायता करने के लिए तैयार थे। इन गोडों की मददमै अप्पा साहब ने चौरागढ़ के किले पर कब्जा कर लिया। कहते हैं कि उस समय नागपुर में भी अनेक लोग अप्पा माहब के पक्ष में थे, जो गुप्त रीति से उसे धन इत्यादि की सहायता पहुँचा रहे थे । बरहानपुर में भी कुछ अरब सेना अप्पा साहब के इन्तज़ार में मौजूद थी। अंगरेज़ों को