१०२६ भारत में अंगरेजी राज दोनों मन्त्रियों को महल से गिरफ्तार करवा कर अपने जेलखाने में बन्द कर दिया। गवरनर जनरल को जब इस घटना का पता लगा तो वह बहुत प्रसन्न हुआ। उसने डाइरेक्टरों को लिखा कि मूठी गवाहियों जो इलज़ाम रेजिडेण्ट ने इससे पहले अप्पा साहब पर लगाया था उसके सुबूत किसी को भी सन्तोषजनक मालूम न होते, किन्तु इस नए इलज़ाम में काम चल जायगा। उसके कुछ शब्द ये हैं :- "मुझे यह अनुभव हुआ कि अपनी कीर्ति बनाए रखने की दृष्टि से हमे अप्पा साहब को गद्दी से उतारने के लिए इससे अधिक जोरदार वजह और कोई न मिल सकती थी कि उस पर इस तरह की हत्या का इलज़ाम लगाया जाय । यदि मुकदमा चलाया जाता तो उसे दोषी साबित करने के लिए सुबूत प्रासानी से पेश किए जा सकते थे।"* इस तरह के सुबूतों के विषय में एक स्थान पर लॉर्ड मैकॉल ने लिखा है :- "लोग उस एक हारा हुआ श्रादमी समझते थे, और उन्होंने उसके साथ इस तरह का व्यवहार किया जैसा कि हमारे कुछ पाठकों ने भारत में देखा होगा कि बहुत से कौवे मिलकर किसी बीमार गिद्ध को चोंच मार मार कर • “ It appeared, however, that for our reputation, we could not go on stronger grounds in deposing him than those of such a murder The proofs tor conviction were easily producible, should the case be tried , Marquess of Hastings' Despatch to the Secret Committee of the Court of Directors, dated 21st August, 1820
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भारत में अंगरेज़ी राज