१०२४ भारत में अंगरेजी राज दिखाई न दिया कि इन लज्जाजनक शर्तों को स्वीकार करके अंगरेजों की कैद से अपने महल में आने की इजाज़त हासिल करे। राजा ने स्वीकार कर लिया, और जनवरी सन् १८१८ को वह अपने महल में पहुँचा । महल और नगर दोनों पर अंगरेज़ी सेना का पहरा लग गया। __वास्तव में जिन शर्तों पर राजा अप्पा साहब ने नागपुर की गद्दी फिर से प्राप्त की वे केवल लज्जाजनक ही नहीं, वरन् असम्भव भी थीं ; अर्थात् जो इलाका राजा के पास बाकी छोड़ दिया गया था उसकी आय से कैदी राजा के लिए कम्पनी की नकदी की माँग को पूरा कर सकना और शासन का खर्च चला सकना बिलकुल असम्भव था। अप्पा साहब ने महल में पहुँचते ही इस बात को अनुभव कर लिया। उसने रेज़िडेण्ट से प्रार्थना की कि मेरा शेष समस्त राज भी मुझसे ले लिया जाय और मेरे गुज़ारे के लिए एक सालाना पेनशन नियत कर दी जाय । किन्तु गवरनर जनरल ने इसे स्वीकार न किया। कारण यह था कि गवरनर जनरल युवक अप्पा साहब का राज ले लेने के लिए लालायित अवश्य था, किन्तु पेनशन की फ़ज़ल ख़र्वी करना न चाहता था। यह बात जानने योग्य है कि अप्पा साहब, जिसकी आयु इस समय केवल २२ वर्ष की थी, मार्किस ऑफ हेस्टिंग्स को अपना 'बाप' और रेज़िडेण्ट जेनकिन्स को अपना 'बड़ा भाई' कहा करता था।
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भारत में अंगरेज़ी राज