तीसरा मराठा युद्ध १०१७ कायरता आज्ञानुसार २५ तारीख को रेजिडेन्सी के मैदान में श्रा पहुंची, और वहाँ पर करीब चार सौ और सैनिक, दो तापें और दो कम्पनी बङ्गाल पैदलों की और कुछ मद्रासी सवार उनमें श्राकर मिल गए । २६ तारीख को प्रातः काल सीताबल्डी की पहाड़ियों पर ये सारी सेनाएँ बाज़ाब्ता खड़ी कर दी गई।" इस विशाल सैन्यदल को ठीक गजधानी के सामने देख कर नागपुर के नीतिज्ञों का घबग उठना स्वाभाविक अप्पा साहब की ___ था। दरबार के अन्दर तुरन्त दो दल पैदा होगए एक राजा अप्पा माहब और उसके कुछ साथी जो अभी तक युद्ध से बचना चाहते थे, और दूसरे वे लोग जो युद्ध को अनिवार्य देखकर फ़ौरन् अंगरेजी सेना पर हमला करने के पक्ष में थे ! कहा जाता है कि इस वाद विवाद के अन्दर ही अप्पा साहब की इच्छा के विरुद्ध उसकी कुछ सेना ने २६ नवम्बर की शाम को सीताबल्डी की अंगरेजी सेना पर हमला कर दिया। किन्तु अंगरेज़ी सेना व्यवस्थित और तैयार थी। दूसरी ओर की सेना अव्यवस्थित और अनिश्चित थी। परिणाम यह हुआ कि मराठा सेना को हार कर पीछे हट जाना पड़ा। राजा अप्पा साहब ने रेज़िडेण्ट को कहला भेजा कि मेरी सेना ने मेरी इच्छा के विरुद्ध कार्य किया है, मुझे युद्ध स्थगित इसका दुख है और आप इसके लिए जो शर्ते तजवीज़ करें, मुझे मन्जूर होगी। जेनकिन्स ने अप्पा साहब के • Mill, vol vill, p 188
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तीसरा मराठा युद्ध