तीसरा मराठा युद्ध १००३ होने को तैयार थे। सतारा का राजा प्रतापसिंह इस समय नाबालिग था। अन्त में एलफिन्सटन और बालाजी पन्त नातू की चालो में प्राकर नाबालिग प्रतापसिंह को माँ ने शिवाजी के वंशज और मराठा साम्राज्य के वास्तविक अधिराज मतारा के राजा की ओर से समस्त महाराष्ट्र प्रजा के नाम यह एलान प्रकाशित कर दिया कि पेशवा बाजीराव के साथ कोई किमी प्रकार का सम्बन्ध न रक्खे और इस संग्राम में सब अंगरेजों को मदद दें । निस्सन्देह सतारा दरबार की इस गलती ने पेशवा बाजीराव के हाथ पैर तोड़ दिए। बाजीराव ने विवश होकर जून मन १८१८ में सर जॉन मैलकम में सुलह को बात चीत की। उस समय भी पेशवा राज का बाजीराव के पास करीब ६.०० सवार और ५,००० पैदल सेना मौजूद थी; और असीरगढ़ का किला अभी तक उसके पास था। अन्त में मर जॉन मैलकम ने गवरनर जनरल की आशानुसार बाजीराव को आठ लाख रुपए सालाना को पेनशन देकर कानपुर के निकट गंगा के किनारे बिठूर नामक स्थान में भेज दिया। पेशवा के इलाके में से एक छोटी सी फाँक बतौर जागीर के सतारा के राजा को दे दी गई, और शेष समस्त इलाका कम्पनी के राज में मिला लिया गया, जो आज कल के बम्बई प्रान्त में शामिल है। इस प्रकार पेशवा राज का अन्त हुआ, और अन्तिम पेशवा बाजीगव का ३२ वर्ष पदच्युत रहने के बाद सन् १८५० में ७५ वर्ष की आयु में देहान्त हुश्रा । सन् १८५७
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तीसरा मराठा युद्ध