पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/५९६

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तीसरा मराठा युद्ध

तीसरा मराठा युद्ध 888 साध बाजीराव में प्रतापसिंह जैसो धान की कमी थी। फिर भी एक बात ध्यान देने योग्य इस सम्बन्ध में यह है कि बाजीराव ने अंगरेज़ों के कहने में श्राकर या डर कर अपने आपको दोषी स्वीकार कर लिया, प्रतापसिंह ने झूठा दोष म्वीकार न किया फिर भी परिणाम दोनों का एक ही हुआ । प्रतापसिंह और बाजीराव दोनों को अपनी अपनी गद्दियाँ छोड़ कर कम्पनी की कैद में प्राण देने पड़े। पेशवा बाजीराव अब बहुत घबग गया। १३ जून की सन्धि ___ के बाद ही वह पूना छोड़ कर पण्ढरपुर चला ध गया। वहाँ से वह मतारा के निकट माहुली के बाद नामक तीर्थ पहुँचा जहाँ कि कृष्णा और यमा नदियों का संगम है । यहाँ उसने सर जॉन मैलकम को मिलने के लिए बुलाया। बाजीराव ने मैलकम से साफ़ कहा कि संगीनों के बल मुझसं पूना की सन्धि पर दस्तखत कराए गए हैं, और वह सन्धि मेरे लिए कितनी हानिकर है । बाजीराव ने इस अवसर पर मैलकम से एलफिन्सटन की जो जो शिकायते की उनमें में यह भी थी कि एलफिन्सटन के जासूस ऐसी बुरी तरह से मेरी देख रेख करते हैं कि एलफिन्सटन को यहां तक पता होता है कि मैंने किस दिन क्या क्या खाना खाया |* साथ ही बाजोगव ने अपने और कम्पनी के बीच फिर से मची मित्रता कायम करने की अभिलाषा प्रकट की। सर जॉन मैलकम ने इलाज के तौर पर बाजीराव को यह सलाह दी कि आप एक सेना जमा करके पिण्हारियों के दमन में अंगरेजों

  • Memorandum of Leut CGirnematlbrigg.