पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/५९

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Sapa E TH APRA m ग मुलतान को पनाकार और सिहासन का चरणासन टीक मात्राज्य के च, सिह था। जिस अदभुत सिंहासन को कलगी मार था उसका चरणासन सन का बना मिह का मुह था। दानों पाख चौर गत बिल्लौर क य 'मर के ऊपर का रियो चमकत हुआ मान की थीं। टापू की पताका प्रोपर मूय का चिन्ह ह ना था। इधर उधर को दोना पताका लाल रशम को थी जिनक बच म म्वण रश्मियों के सूय बन थे। पांच का पनाका हरे रंग की था जिसपर मुनहरा सूथ कढ़ा था । पताकाओं के मिर दास मान के जिनम लाल हीरे और जमुगर जड य य तीनों बहुमूल्य पताका और चरणासन इस समय इलस्तान के रजमहल म रवम्व है।