६६२ भारत में अंगरेजी राज तक यही कारण था कि लोग इस पतन को पेशवा बाजीराव के इस पाप कर्म का दण्ड समझते थे x x x"* कहा जाता है कि रेजिडेण्ट एलफिन्सटन ने तहकीकात करके यह नतीजा निकाला कि शास्त्री की हत्या करने वालों को त्रयम्बकजी ने नियुक्त किया था। मालूम नहीं वह तहकीकात किस ढङ्ग की थी और अपराधी त्रयम्बकजी को जवाबदेही का अवसर दिया गया या नहीं। थोड़ा सा धन खर्च करके एलफ़िन्सटन जैसे श्रादमी के लिए गवाह खड़े कर लेना कोई कठिन कार्य न था। स्वयं अंगरेजों के उस समय के लेखों सं साबित है कि एलफ़िन्सटन की यह तहकीकात केवल एक ढकोसला थी। वास्तव में त्रयम्बकजी भी अंगरेजों के मार्ग में एक काँटा था। वह एक योग्य और जागरूक मराठा नीतिज्ञ ' था। गुजरात का जो इलाका पेशवा ने हाल में उसे दिया था वह कम्पनो की सरहद से मिला हुआ था और अंगरेजों के स्वयं उस इलाके पर दाँत थे । एलफ़ि- न्सटन के पत्रों में इधर से उधर तक भरा पड़ा है कि त्रयम्बकजी अंगरेजों के विरुद्ध पेशवा को सदा सावधान करता रहता था। मराठों के साथ नया युद्ध छेड़ने से पहले किसी प्रकार उसे पूना से अलग कर देना आवश्यक था। एलफ़िन्सटन ने पेशवा पर जोर दिया कि त्रयम्बकजी को फ़ौरन् अंगरेजों के हवाले कर त्रयम्बक जी को गिरफ्तारी Prinsep's History of the Political and Military Transactions, vol 1, p321
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भारत में अंगरेज़ी राज