९६० भारत में अंगरेजी राज के इस प्रकार बड़ोदा लौट जाने का परिणाम पेशवा और गायक- वाड में वैमनस्य का बढ़ जाना होता । इसलिए गङ्गाधर पूना में ठहर कर मेल के प्रयत्न करता रहा । एलफिन्सटन उस पर बराबर बड़ोदा लौट जाने के लिये जोर देता रहा। इस बीच एक दिन गङ्गाधर पेशवा के साथ पराढरपुर की यात्रा को गया। १४ जुलाई सन् १८१५ को अचानक कुछ अपरिचित लोगों ने आकर तीर्थस्थान पगढरपुर में गङ्गाधर को क़त्ल कर डाला। एलफिन्सटन और उसके साथी अंगरेजों ने यह जाहिर किया कि बाजीराव के मन्त्री त्रयम्बक जो ने पेशवा की प्राशा से गङ्गाधर को मरवा डाला। पेशवा बाजीराव एक धर्मनिष्ठ ब्राह्मण था, जिसने बॉम्बे गजे- टियर के अनुसार पूना के पास पास कई लाख शास्त्री की हत्या श्राम के वृक्ष लगवाए थे। ब्राह्मणों और धार्मिक की ज़िम्मेदारी सस्थाओं को वह खूब धन और जागीरें दिया करता था । पण्ढरपुर मे विठोबा के मन्दिर का वह विशेष भक्त था। उस समय भो वह पराढरपुर की यात्रा के लिए गया हुश्रा था। गङ्गाधर शास्त्री भी ब्राह्मण था। इम सब के अतिरिक्त इस हत्या में महीनों पहलं गङ्गाधर शास्त्रो, बाजीराव और त्रयम्बकजी तीनों में मेल हो चुका था। और यही मेल कम्पनी के प्रतिनिधियों की नज़रों में खास तौर पर खटक रहा था। इस समस्त स्थिति में गङ्गाधर की हत्या का इलज़ाम बाजीराव या त्रयम्बकजी पर लगाना सरासर अन्याय है। त्रयम्बकजी के चरित्र और समस्त
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भारत में अंगरेज़ी राज