४८० भारत में अंगरेजी राज इस तमाम छानबीन में हमें केवल दो लेख इस तरह के मिल ___ सके जिन्हें किसी तरह भी प्रामाणिक कहा जा टोपू के दो एलान - सके और जिनसे टीपू में धार्मिक सङ्कीर्णता का आभास हो सके । पहला लेख टीपू का उस समय का एक एलान है जब कि अंगरेजों और नवाव करनाटक के साथ टीपू का युद्ध जारी था। इस एलान में टीपू ने कुरान की प्रायतों और महाकवि हाफ़िज़ की कुछ पंकियों को उद्धृत करते हुए शत्रु के इलाके में रहने वाले मुसलमानों से प्रार्थना की है कि आप लोग विदेशियों को मदद न दें और शत्रु के इलाके को छोड़कर मैसूर राज में प्रा बसे। पलान में दर्शाया गया है कि किसी मुसलमान के लिए हिन्दोस्तान के हित के विरुद्ध विदेशियों की सहायता करना पाप है। टीपू ने इस एलान में करनाटक और बंगाल के अन्दर अंगरेजो के अत्याचारों की ओर इशारा करते हुए लिखा है-"हिन्द के नरेशों की निर्बलता के कारण वह मदोद्धत जाति ( यानी अंगरेज ) व्यर्थ यह समझ बैठी है कि सच्चे दीनदार लोग निर्बल, तुच्छ और निकृष्ट हो गए हैं।" एलान में यह भी लिखा है कि हमने अपनी सलतनत भर में प्रजा और राजकर्मचारियों को यह माशा भेज दी है कि जो लोग शत्रु के इलाके से आकर मैसूर राज में बसना चाहे उनके जान माल की पूरी हिफाजत की जाय और उनकी जीविका इत्यादि का मुनासिब प्रबन्ध करा दिया जाय, इत्यादि ।* दूसरा लेख मैसूर राज में रहने वाले हिन्दोस्तानी ईसाइयों से • Select Letters of Tipu Sultan to various puble functionaries, arranged and translated by William Kirkpatrick, pp 293-97
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भारत में अंगरेज़ी राज