तीसरा मराठा युद्ध ६३ अधिकारों से इनकार किया। बड़ोदा गजेटियर के अनुसार अब पेशवा को केवल यह अधिकार रह गया था बड़ोदा के साथ कि जो नया महाराजा बड़ोदा की गद्दी पर दुरंगी चालें " बैठे उसका अभिषेक बिना एतराज किये पेशवा अपनी ओर से कर दे। अंगरेज़ उन दिनों अपनी सुविधा के अनुसार कभी गायकवाड़ को पेशवा का सामन्त मान लेते थे, और कभी फिर एक स्वाधीन नरेश के समान उसके साथ व्यवहार करने लगते थे। कग्नल वैलेस ने बड़ी सुन्दरता के साथ गायकवाड़ की भोर कम्पनी की उस समय की नीति को वर्णन किया है। उसका कथन है- "गायकवाद की रियासत कम्पनी के हाथों का एक खिलौना थी। जब जरूरत पड़ती थी उस मित्रवत् कलेजे से लगा लिया जाता था ; और जब ज़रूरत न रहती थी तब अलग कर दिया जाता था। गायकवाड़ रियासत के सम्बन्ध में इस तरह की सन्धियों की गई जिनमें रियासत से पूछा तक नहीं गया । स्वयं रियासत के साथ इस तरह की सन्धियाँ की गई जिनको नोड़ने में जब भी कम्पनी को लाभ दिखाई दिया, तोड़ डाली गई। कभी उसे एक स्वाधीन रियासत कह कर पेशवा में युद्ध करने के लिए उकसाया गया । और फिर युद्ध समाप्त होने पर उसे मराठा साम्राज्य का केवल एक सामन्त माना गया । रियासत को वाह्य नीति बिलकुल इसी तरह चलाई जाती थी।"* "The Gaikwad state had been the utensil of the Honorable Company; it had been embraced as an ally when required, and dismissed when no longer wanted , treaties had been made respecting it, in which it was not
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तीसरा मराठा युद्ध