६२ भारत में अंगरेजी राज मेजर ए० वाकर, जिसका ऊपर ज़िक्र है, कम्पनी सरकार की ओर से बड़ोदा भेजा गया था। कारण यह था कि उस समय अंगरेज़ महाराजा श्रानन्दराव साथ नई सन्धि गायकवाड़ पर इस बात के लिए ज़ोर डाल रहे थे कि आप अपने दरबार की रही सही सेना को बरखास्त करके राज की रक्षा का कार्य केवल कम्पनी की सबसीडीयरी सेना के सुपुर्द कर दें। श्रानन्दराव इसके लिए किसी प्रकार राज़ी कर लिया गया। किन्तु बड़ोदा दरबार को सेना में उस समय अधिक- तर अरब सिपाही और अरब जमादार थे। ये लोग वीर और राज के सच्चे हितचिन्तक थे । अपने और रियासत दोनों के नाश को वे इतनी आसानी में सहन न कर सके । महाराजा को इन वफ़ादार अरबों के विरुद्ध खब भड़काया गया। किन्तु महाराजा का एक सम्बन्धी मलहरराव गायकवाड़ भी महाराजा की इस घातक नीति के विरुद्ध खड़ा हो गया। अंगरेजों कोमलहरराव और इन अरबों दोनों को दमन करने के लिए सेना भेजनी पड़ी। सेना भेजने से पहले "स्थिति को देखने और ठीक करने के लिए मेजर वाकर को बड़ोदा भेजा गया। गायकवाड़ पेशवा का सामन्त था, फिर भी मेजर वाकर ने पेशवा से ऊपर ही ऊपर बड़ोदा दरबार के साथ एक सन्धि कर ली। निस्सन्देह पेशवा के अधिकारों पर यह साफ़ हमला था। गायकवाड़ के दोवान को नामजद करने इत्यादि के अधिकार अरसे से पेशवा को प्राप्त थे। कम्पनी ने अब पेशवा के इन सब
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भारत में अंगरेज़ी राज