पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/५७३

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तीसरा मराठा युद्ध

तीसरा मराठा युद्ध ६७७ अर्थात् इस प्रकार घेर कर मराठा साम्राज्य के एक मुख्य स्तम्भ महाराजा दौलतराव सींधिया सं एक नए सन्धि पत्र पर हस्ताक्षर करा लिए गए । इस नई सन्धि से सींधिया राज की आन्तरिक स्वाधीनता में फरक न पाया, न महाराजा दौलतराव ने कम्पनी के साथ सबसीडीयरी सन्धि स्वीकार की, किन्तु सींधिया का साम्राज्य परिमित होगया। राजपूताने के नरेश, जो अभी तक महाराजा सींधिया के सामन्त थे, इस नई सन्धि के अनुसार कम्पनी के अधीन हो गए, और सींधिया ने पिण्डारियों के दमन में अंगरेजों को सहायता देने का वादा कर लिया, राजपूत नरेशों की नई सबसीडीयरी सेनाएँ भी अब पिण्डारियों और मराठों दोनों के दमन के लिए कम्पनी के हाथ आ गई। चार मुख्य मराठा नरेशों, सींधिया, पेशवा, भोसले और होलकर में से सींधिया को इस प्रकार बिना युद्ध के ही नोचा दिखा दिया गया। शेष तीनों को वश में करना अब लॉर्ड हेस्टिंग्स के लिए बाकी रह गया। पेशवा बाजीराव, बसई की सन्धि और दूसरे मराठा युद्ध का बयान एक पिछले अध्याय में किया जा चुका पेशवा बाजीराव है। बाजीराव अन्तिम पेशवा था, किन्तु अंगरेज़ी और अंगरेज़ " के साथ उसके अन्तिम संग्राम को बयान करने से पहले दूसरे मराठा युद्ध से उस समय तक के बाजीराव और कम्पनी के सम्बन्ध को बता देना आवश्यक है। कम्पनी ही ने अपने हित के लिए बाजीराव को दोबारा पूना