&५ तीसरा मराठा युद्ध इसके पश्चात् महाराजा सींधिया स कम्पनी ओर राजपूत नरेशों के इस नए सम्बन्ध को स्वीकार कराना आवश्यक था। सींधिया राज के उत्तर में कम्पनी की काफ़ी सेना तैयार हो चुकी थी। इस सेना की सहायता से हेस्टिंग्स ने जिस तरह महाराजा सींधिया पर दबाव डाल कर उससं नई सन्धि स्वीकार कराई उसे हेस्टिंग्स हो के शब्दों में बयान करना उचित है । लॉर्ड हेस्टिग्म का कथन है :- "सींधिया के साथ हमारी पहली सन्धि x x x में एक शर्त हमारे लिए अपमानजनक और बाधक थी। इस शर्त के अनुसार हम राजपूत रियासतों के साथ किसी तरह का पत्र व्यवहार न कर सकतं ,x x इस तरह के हानिकारक बन्धन को तोड़ कर मैंने इन सब रियासतों को अंगरेज़ सरकार की सामन्त बना लिया । यद्यपि इनमें से हर एक रियासत के पास बहुत सी सना थी, फिर भी अपनं वापस के झगड़ों के कारण ( जो झगड़े कि मुख्य कर व्यर्थ की छोटी छोटी बातों और प्रायः इन नरेशों के पैतृक विवादों से उत्पन्न होते थे ) व कभी मिल कर एक न हो सकते थे। "निस्सन्देह यदि सींधिया, जो अन्य देशी नरेशों से कहीं अधिक शक्ति शाली था, उस समय अपनी अभ्यस्त सेनाओं व सुन्दर और सुव्यवस्थित सोपखाने सहित मैदान में उतर पाता तो मराठा मण्डल के अन्य नरेशों को इतने अधिक स्थानों पर शस्त्र उठाने का समय मिल जाता और साहस हो जाता कि उससे हमें अपनी काररवाइयों में बहुत सावधान रहना पड़ता, हमें बहुत देर खग जाती, और हमारा खर्च बहुत बढ़ जाता। x x x सींधिया
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तीसरा मराठा युद्ध