पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/५६९

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तीसरा मराठा युद्ध

६७३, तीसरा मराठा युद्ध और कर्तव्यनिष्ठ सम्राट अकबर के चरित्र पर भी झूठा कलक लगाने में सङ्कोच नहीं किया। किन्तु अपना राजनैतिक उद्देश पूरा करने में करनल टॉड को आश्चर्यजनक सफलता प्राप्त हुई । सर डेविड प्रॉक्टरलोनी लिखता है कि करनल टॉड राजपूताने के राजाओं और सरदारों से जी भर कर नज़रें और रिशवतें भी वसूल किया करता था। टॉड के बनाए हुए मध्य भारत के नकशे से लॉर्ड हेस्टिंग्स को तीसरे मराठा युद्ध में बहुत बड़ी सहायता मिली। इसके पहले शुरू से मराठों और राजपूतों के बीच अधिकतर अच्छा सम्बन्ध रह चुका था । इतिहास से पता मराठी और राज- चलता है कि राजपूतों ही की मदद से मराठों पूनों का सम्बन्ध र ने मालवा प्रान्त को विजय किया, बल्कि यदि राजपूतों की सहायता न होती तो सम्भव है कि मराठे मध्य भारत में एक चप्पा ज़मीन भी प्राप्त न कर पाते । विशेष कर जयपुर के राजा जयसिंह ने मालवा और उत्तरी हिन्दोस्तान को विजय करने में मराठों को बहुत बड़ी सहायता दो समस्त राजपूताना मराठा साम्राज्य का एक अंग था। पेशवाओं ने भी अपनी शक्ति भर राज- पूताने के पुराने राजकुलों को उनके पैतृक सिंहासनों पर कायम रक्खा । निस्सन्देह हाल के दिनों में सींधिया और होलकर की सेनाओं ने राजपूतों के साथ युद्ध किए और उनकी रियासतों को भी कहीं कहीं लूटा । किन्तु इस तरह के कार्यों में अधिकतर उस समय की कम्पनी सरकार का हाथ होता था। अमीर खाँ की सेना