पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/५६६

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
९७०
भारत में अंगरेज़ी राज

&७० मारन में अंगरेजी गज स्वाधीन मराठा रियासतों के विरुद्ध लया जायगा। और उनका यह सन्देह बेबुनियाद न था। पिण्डारियों के दमन के बाद ही नए मराठा युद्ध की सम्भावना पर बड़े बड़े सरकारी पत्र व्यवहार हो रहे थे, और हमारी चावनियों में इस विषय की बातचीत होती रहती थी। राजनीतिज्ञ लोग कौन्सिल की मेज़ पर बैठ कर सोदगी के साथ इस विषय की बहसें करते थे, और सिपाही लोग खाने की मेज़ पर बैठ कर खुश हो होकर इसकी पेशीनगोइयों करते थे। x x x निस्सन्देह हम यह माशा नहीं कर सकते कि जिस समय हम अपनी मोपों में गोल भर कर, उनके मुँह पर बारूद रख कर, जलता हुआ फलोता हाथ मे लिए खड़े हों, उस समय सारी दुनिया अपनी तोपें उतार कर अलग रख दे।"* एक दूसरा अंगरेज लेखक लिखता है- "सन् १८१७ की गर्मी और पतझड़ के दिनों मे विविध सेनाएँ अपनी अपनी जगह जमा हुई। एक बड़ी सेना स्वय लॉर्ड हेस्टिंग्स के नेतृत्व में करीव ३४,००० स्थायी सैनिकों की थी। इस सेना की तीन डिवीज़ने की गई और शेष कुछ सेना बचा कर रिज़र्व में रक्षी गई । तीन डिवीजनों में से एक मागरे में, दूसरी कालपी के नज़दीक जमना के किनारे सिकन्दरे में, और तीसरी कलिजर बुन्देलखण्ड में; और बाकी संना दिल्ली के दक्विन पच्छिम रेवाड़ी में नियुक्त की गई। "दक्खिन की सेना लेफ्टिनेन्ट-अनरत सर टॉमस हिसखाप के अधीन पाँच डिवीज़नों और एक रिजर्व में बाँटी गई, जिसमें ५७,००० स्थायी सैनिक थे। • Life and Correspondence of Sir John Malcolm, by Sir John Kaye, vol ll, p. 187