पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/५६४

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भारत में अंगरेज़ी राज

१६ भारत में अंगरेजी राज करना अनावश्यक है। पिण्डारियों के अलग अलग जत्थे होते थे, जो 'दुर्रे' या 'लब्बर' कहलाते थे। जब तक इनके ये सब दुई मेल से कार्य करते रहे, अंगरेजों के लिए उन्हें जीत सकना असम्भव दिखाई दिया। किन्तु ज्योंही कम्पनो की कूटनोति के कारण विविध पिण्डारी दुरों के अन्दर फूट फैल गई, ये दुरे एक एक कर बरबाद होगए । जो पिण्डारी सरदार अपने साथियों के साथ विश्वासघात करके अंगरेजों से मिल गए उन्हें कम्पनी की ओर से हज़ारों रुपए सालाना की जागीरें दे दी गई । जो अपनी पान पर डटे रहे या जिन्होंने मराठा नरेशों के साथ विश्वासघात करने से इनकार किया वे या तो युद्ध में मारे गए या जंगलों में खूखार जानवरों का शिकार हुए । इस प्रकार धीरे धीरे कम्पनी के प्रति- निधियों ने उन वीर पिण्डारियों के अस्तित्व को मिटा डाला, जिनका अपने साम्राज्य निर्माण के कार्य में वे हाल ही में मीढ़ी की तरह उपयोग कर चुके थे। किन्तु लॉर्ड हेस्टिंग्स ने मराठा साम्राज्य की सरहद के बराबर बराबर इस समय एक लाख से ऊपर सेना जमा युद्ध की विशाल " कर ली थी। यह विशाल तैयारी केवल तीस तैयारी हजार पिण्डारियों के दमन के लिए ही न थी। इस तैयारी के विषय में इतिहास लेखक सर जॉन के ने लिखा है- "हमारी सैनिक तैयारियों इतने जबरदस्त पैमाने पर थीं x x x | "पाठक को चाहिए कि भारत का कोई नशा अपने सामने रख ले, और सोचे कि कृष्णा और गंगा नदियों के बीच में कितनी बम्बी और