पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/५५२

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भारत में अंगरेज़ी राज

६५६ भारत में अंगरेज़ी राज किसी हिस्से पर डाका डाला । काठियावाड़ के राजा पेशवा और गायकवाड़ के सामन्त थे, और पेशवा और गायकवाड़ दोनों, सन्धियों द्वारा, कम्पनी सरकार के मित्र थे। बस, कच्छ पर हमला करने के लिए यही काफ़ी वजह समझी गई। करनल ईस्ट के अधीन एक सेना कच्छ पर चढ़ाई करने के लिए भेजी गई । कच्छ जैसी छोटी सी रियासत को विजय कर लेना कम्पनी के लिए अधिक कठिन न था। करनल ईस्ट ने थोड़ी सी लड़ाई के बाद अञ्जार के किले पर कब्जा कर लिया, इसके बाद कच्छ के राजपूत राजा को डराया गया कि सिन्ध के मुसलमान अमीर तुम पर हमला करने वाले है और यदि तुमने अंगरेज़ कम्पनी के संरक्षण में आना स्वीकार न किया तो अंगरेज़ तुम्हारे विरुद्ध सिन्ध के अमीरों को मदद देने पर मजबूर हो जायेंगे । इस विचित्र न्याय के औचित्य पर बहस करने की आवश्यकता नहीं है और न यह बताने की आवश्यकता है कि कच्छ पर सिन्ध के हमले की बात सर्वथा झूठ थी। लाचार होकर सन् १८१६ में कच्छ के राव ने कम्पनी के साथ सन्धि कर ली। पच्छिमी भारत में अंगरेजों का प्रभाव बढ़ गया, और उसी दिन से कच्छ की स्वाधीनता समाप्त हो गई। करीब इतनी हो छोटी कहानो हाथरस और मुरसान नामक जाट रियासतों की है । गङ्गा और जमना के हाथरस और र बीच की जाट रियासतें इस समय तक स्वाधीन थीं। इनमें मुख्य भरतपुर की रियासत थी, जिसे परास्त करने के प्रयत्न में लॉर्ड लेक दो बार ज़िल्लत उठा मुरसान