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भारत में अंगरेज़ी राज

हार ६४ भारत में अंगरेज़ी राज दुगुनी से अधिक सेना थी, दूसरे उसने नैपाल राज के सामन्तों और वहाँ की प्रजा को भी झूठे लोभ दे देकर अमरसिंह के विरुद्ध तोड़ लिया। इस सब के होते हुए भी नवम्बर सन् १८१४ से अप्रैल सन् ____१५ तक अर्थात् पूरी सरदी भर श्रॉक्टरलोनी मॉक्टरलोनी की ने अमरसिंह की सेना पर जितनी बार हमले किए उतनी बार ही उसे हार खाकर पीछे हटना पड़ा । इतिहास लेखक प्रिन्सेप ने इन सब लड़ाइयों में अमर सिंह की वीरता और उसके युद्ध कौशल को मुक्त कण्ठ से प्रशंसा की है। नेपालियों की ओर इस समय सब से बड़ी कमी इस बात की रही कि गोरखा सेनापतियों का केवलमात्र लक्ष्य अपने इलाके की रक्षा करना था। उन्होंने एक बार भी आगे बढ़ कर अंगरेज़ी इलाके पर हमला करने का इरादा न किया। इसका कारण चाहे यह रहा हो कि संख्या में, धन में और युद्ध के सामान में वे अंगरेजों से कम थे और उन्हें आगे बढ़ने का साहस न हो सका, या यह कि वे वृथा रक्तपात के विरुद्ध थे, किन्तु इससे अंगरेज़ों को अपने “गुप्त उपायों" के लिए काफ़ी समय मिल गया। पश्चिम में श्रॉक्टरलोनी की साज़िशें जारी रहीं और पूरब में मेजर लैटर ने, जो पाँचवीं सेना का प्रधान सेना कुमायू और पति था, सिकिम के राजा को नेपाल के विरुद्ध गढ़वाल अपनी अोर कर लिया, और उसकी मदद से नेपाल के मोराङ्ग प्रान्त पर कब्जा कर लिया।