पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/५४०

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
९४४
भारत में अंगरेज़ी राज

६४४ भारत में अंगरेजी राज मारटिण्डल कलङ्गा के दुर्ग की कहानी सुन चुका था। उसे पता लगा कि जयटक के दुर्ग के अन्दर पोने का अंगरेजों की पानी नीचे के कुछ कुत्रों से जाता है। उसने अपनी मुख्य सेना को दो अलग अलग दलों में बाँट कर एक मेजर लडलो के अधीन और दूसरा मेजर रिचर्डस के अधीन दो ओर से इन कुत्रों को घेर लेने के लिए भेजा। किन्तु गोरखों ने इन दोनों सैन्यदलों को बुरी तरह परास्त किया और मेजर लडलो और मेजर रिचर्डस दोनों को अपने अनेक अफ़सर और सैकड़ों सिपाही मैदान में छोड़ कर और अनेक शत्रु के हाथों कैद करा कर पीछे लौट आना पड़ा। प्रोफेसर विलसन लिखता है कि इस हार के बाद जनरल मारटिण्डल को जयटक के किले पर दोबारा हमला करने का साहस न हो सका। जनरल जिलेस्पी वाली सेना की कहानी यहीं पर समाप्त हो जाती है । कुल जितनी सेना मेरठ से रवाना हुई थी उसमें से एक तिहाई इस समय तक खत्म हो चुको थी। __ दो और सेनाएं, जिनमें करीब बारह हजार सिपाही थे, गोरखपुर और बिहार में जमा की गई थीं। इन दोनों सेनाओं का काम पूरब की ओर से नेपाल में प्रवेश करके राजधानी काठमण्डू पर हमला करना था। किन्तु इन दोनों दलों को और भी अधिक लज्जास्पद पराजयों का सामना करना पड़ा। अनेक स्थानों पर नेपाली सेना के साथ इनके संग्राम हुए, और हर संग्राम में बुरी तरह हार खाकर इन्हें पीछे हट जाना पड़ा । इन दोनों विशाल