पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/५३९

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नैपाल युद्ध

नेपाल युद्ध दो ६४३ में भेजा, इसलिए कि वह वहाँ को पहाड़ी कौमों को भड़का कर नेपाल दरबार के विरुद्ध उनसे विद्रोह करवा दे। इतिहास लेखक विलसन लिखता है कि करनल कारपेण्टर के प्रयत्नों से जौनसर इलाके की प्रजा बगावत कर बैठी, जिसके कारण बैराठ के दुर्ग की मुट्ठी भर गोरखा सेना को दुर्ग छोड़ कर पीछे हट जाना पड़ा। करनल मॉबी स्वयं सिरमौर को राजधानी नाहन पहुँचा । सिरमौर नेपाल की एक सामन्त रियासत थी। हाल में नेपाल दरबार ने सिरमौर के पुगने राजा को किसी अपराध में गही से उतार कर अमरसिंह थापा को वहाँ का शासन सौंप दिया था। अमरसिंह थापा उस समय श्रीनगर के दुर्ग की रक्षा के लिए नियुक्त था। अमरसिंह का पुत्र रणजूरसिंह नाहन में था। करनल मॉबी ने अमरसिंह की अनुपस्थिति में पदच्युत राजा को अपनी ओर तोड़ लिया। अमरसिंह ने अपने पुत्र रणजूरसिंह को श्राज्ञा दी कि तुम नाहन छोड़ कर कुछ दूर उत्तर की ओर जयटक के दुर्ग में श्राजाओ और श्रास पास की पहाड़ियों को अपनी सेना से घेर लो। जयटक के दुर्ग में रणजूरसिंह के अधीन करीब दो हजार नेपाली सेना थो । २० दिसम्बर सन् १८१४ को जनरल जिलेस्पी की जगह जनरल मारटिण्डल उस ओर की अंगरेज़ी सेना का प्रधान सेनापति नियुक्त हुश्रा । २५ को जनरल मारटिण्डल ने अपनो समस्त सेना सहित जयटक के दुर्ग पर हमला किया। वीर बलभद्रसिंह भी उस समय जयटक के दुर्ग में मौजूद था। मारटिण्डल की सेना दुर्ग की नेपाली सेना से कई गुनी थी।