नेपाल युद्ध ६३६ जिलेस्पी की मृत्यु के बाद थोड़ी देर के लिए सेना का नेतृत्व फिर करनल मॉबी के हाथों में पाया। मॉबी ने मुहासरे को जारी रखने की अपेक्षा अब जल्दी से पीछे हट थाने में ही अधिक बुद्धिमत्ता समझी। पीछे हट कर उसने सहायता के लिए दिल्ली पत्र लिखा । एक महीने में और अधिक फ़ौज और तोपें दिल्ली से देहरादून पहुँची । २५ नवम्बर को फिर एक बार अंगरेजी सेना ने कलङ्गा के दुर्ग को विजय करने का प्रयत्न किया, इस बार भी उन्हें हार खाकर पीछे हटना पड़ा। मुहासरा जारी रहा और अंगरेज़ी तो रात दिन दुर्ग के ऊपर गोलों की वर्षा करती रहीं। इस बीच दुर्ग के अन्दर पानी का काल पड़ गया। पानी वहाँ नीचे की पहाड़ियों के कुछ झरनों से जाता था। गोरखा सेना का येझरने इस समय अंगरेजी सेना के हाथों में थे, प्यास से __और अंगरेजों ने दुर्ग के अन्दर पानी का जाना लाचारी बिलकुल बन्द कर दिया था। बलभद्रसिंह और उसके बचे हुए साथियों की हालत इस समय अत्यन्त करुणाजनक थी। अंगरेज़ी तोपों के गोले दुर्ग के भीतर लगातार अपना काम कर रहे थे। इस बौछार में जख्मियों की चीखे और पानी की एक एक बूंद के लिए स्त्रियों और बच्चों की तड़पन और इस सब पर एक छोटा सा नाम मात्र का दुर्ग जिसके चारों ओर की दीवारों में सूराख हो चुके थे, और दुर्ग के बाहर असंख्य शत्रु । शत्रु के गोलों की शायद वे इतनी परवा न करते, किन्तु पानी की प्यास ने उन्हें लाचार कर दिया।
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नैपाल युद्ध