पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/५३३

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
९३७
नैपाल युद्ध

नेपाल युद्ध जिलैस्पी नालापानी पहुंचा। तीन दिन जिलेस्पी को तैयारी में लगे। उसके बाद उसकी श्राशानुसार चारों ओर से चार अंगरेज़ी पलटनों ने एक साथ दुर्ग पर हमला किया। एक ओर को पलटन करनल कारपेण्टर के, दूसरी ओर की कप्तान फॉस्ट के, तीसरी ओर की मेजर कैली के, और चौथी ओर की कप्तान कैम्पबेल के अधीन थी। एक पाँचवीं पलटन मेजर लडलो के अधीन खास ज़रूरत के समय के लिए पीछे रखो गई। चारों ओर से ज़ोरों के साथ कलङ्गा के दुर्ग पर गोलेबारी शुरू हुई । अंगरेज़ी तोपों ने बलभद्रसिंह के तीन नेपाली स्त्रियों मबहादरों में से अनेकों को खेत कर दिया। " फिर भी दुर्ग के भीतर से बन्दूकों की गोलियां लगातार तोप के गोलों का जवाब देती रहीं; और अंगरेज़ी सेना में से जो योधा बार बार दुर्ग तक पहुँचने की कोशिश करते थे उन्हें हर बार वहीं पर ख़त्म करती रहीं। कप्तान वन्सीटॉर्ट लिखता है कि गोलियों की इस बौछार में अनेक बार साफ दिखाई दिया कि नेपाली स्त्रियाँ बेधड़क चहारदीवारी पर खड़ी हाकर वहाँ से शत्रुओं के ऊपर पत्थर फेंक रही थीं; यहाँ तक कि बाद में दीवार के खण्डहरों में अनेक स्त्रियों की लाशें मिलीं । अंगरेजी सेना ने अनेक बार ही दुर्ग की दीवार तक पहुँचने के प्रयत्न किए, किन्तु ये सब प्रयत्न निष्फल गए। इनमें अनेक ही अंगरेज़ो अफसरों और सिपाहियों की जाने गई । इन्हीं में से एक प्रयत्न में मेजर जनरल जिलेस्पी ने भी कलङ्गा की दीवार के नीचे अपने प्राण दिए। की वीरता