९३६ भारत में अंगरेज़ी राज जीवनसिंह' ने देहरादून तक पहुँचने में अंगरेज़ों को बहुत मदद दी। जिलेस्पी स्वयं कुछ पीछे रह गया। हमें स्मरण रखना चाहिए कि इसके पाठ दिन के बाद १ नवम्बर को हेस्टिंग्स ने नेपाल के साथ बाज़ाब्ता युद्ध का एलान किया। फिर भी सेनापति बलभद्र सिंह ने इस अवसर पर अपने से नौ गुनी और कहीं अधिक सन्नद्ध अंगरेजी सेना का अपने नाम मात्र के दुर्ग में जिस वीरता के साथ मुकाबला किया, वह वीरता संसार भर के इतिहास में सदा के लिए स्मरणीय रहेगी। ___ कलङ्गा के दुर्ग के अन्दर बलभद्रसिंह के पास केवल तीन सौ सिपाही और तीन सौ स्त्रियाँ और बच्चे थे। करनल मॉबी को विश्वास था कि बलभद्रसिंह उस छोटे से अधकचरे दुर्ग के अन्दर, मुट्ठी भर श्रादमियों के सहारे, अंगरेजी सेना के मुकाबले का साहस न करेगा । २४ अक्तूबर की रात को मॉबी ने बलभद्रसिंह को लिन भेजा कि दुर्ग अंगरेजों के हवाले कर दो, बलभद्रसिंह ने मॉबी के दूत के सामने पत्र को पढ़ कर फाड़ डाला और उसी दूत की जबानी अंगरेजी सेना को तुरन्त युद्ध के लिए आमन्त्रित किया। ____२५ तारीख को सवेरे करनल मॉबी अपनी सेना सहित नाला पानी की तलहटी में जा पहुँचा। दुर्ग के चारों ओर तोपे लगा दी गई। दुर्ग के भीतर से नैपाली बन्दूकों की गोलियाँ बराबर अंगरेजी तोपों का जवाब देती रहीं। मॉबी ने जब देखा कि शत्रु को वश में कर सकना इतना सरल नहीं है, तो उसने जनरल जिलेस्पी को खबर दी। जिलेस्पी उस समय सहारनपुर में था २६ अक्तूबर को
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भारत में अंगरेज़ी राज